गुरुवार, 24 नवंबर 2011

सूरज चाचा रोज सुबह तुम हमें जगाने आते हो .

     
सूरज चाचा रोज सुबह तुम 
 हमें जगाने आते हो ;
किरण बुआ के उजियारे से 
सारा जग चमकाते हो .
काले काले अंधियारे से 
खो जाती हैं सभी दिशाएं ;
मेरे जैसे नन्हे बच्चे 
माँ से लिपट-चिपट सो जाये 
तुम आकर के अंधकार का 
सारा दंभ मिटाते हो .
सूरज चाचा रोज सुबह 
तुम हमें जगाने आते हो !
शीतकाल में धूप सेंककर 
कितना अच्छा लगता है !
खील-बताशे ;गन्ना गुड भी 
साथ साथ में चलता है ,
तुम ही हो जो क्रूर शीत से 
आकर हमें बचाते हो .
सूरज चाचा रोज सुबह 
तुम हमें जगाने आते हो .

                                 शिखा कौशिक 


कोई टिप्पणी नहीं: