बुधवार, 20 जुलाई 2011

पापा हमको ''डॉगी '' ला दो

 पापा हमको ''डॉगी  '' ला दो 
हम डॉगी संग खेलेंगे ;
उसको पुचकारेंगे जी भर 
कभी गोद में ले लेंगे .


पूंछ हिलाएगा जब आकर 
उसको हम सहलायेंगे ;                                                    
मिटटी में गन्दा होगा जब 
उसको हम नहलायेंगे .
पापा हमको ...

बन्दर जब आयेंगे छत पर 
डॉगी से भगवाएंगे   ;
उश ..उश ..कर कूद कूद कर 
उसको जोश दिलाएंगे 
पापा हमको .....

उसको बाँहों में भर लेंगे 
जब स्कूल से आयेंगे ;                                                           
हाथ मिलाना सिखलाएंगे 
योगा भी करवाएंगे .
पापा हमको .....

                    शिखा कौशिक 



गुरुवार, 14 जुलाई 2011

हम बच्चे हैं प्यारे-प्यारे





फूलों जैसे कोमल मन के
तितली जैसे चंचल हैं ,
हम बच्चे हैं प्यारे-प्यारे
सदा ह्रदय से निर्मल हैं .

होंठों पर मुस्कान सजाये
उछल-कूद हम करते हैं ,
अपनी मीठी बोली से
सबका मन हर लेते हैं .

पापा के हम राज दुलारे
माँ की आँख के तारे हैं ,
हमको ही तो सच करने
अब उनके सपने सारे हैं

शिखा कौशिक

शनिवार, 2 जुलाई 2011

नहीं टालते बात बड़ों की

नहीं  टालते बात बड़ों की 


बारिश के दिन शुरू हुए थे 
टर्र टर्र टर्रराता  था ;
टिंकू मेढक उछल-उछल कर 
अपने पर इतराता था .
उसकी मम्मी उसे रोकती 
उनपर वो चिल्लाता था ;
मम्मी की इस रोक-टोक पर 
उसको गुस्सा आता था ,
मम्मी कहती गीली मिटटी 
कहीं फिसल न तुम जाना !
टिंकू कहता बड़ा अकड़कर 
क्या मुझको बुद्धू माना ?
लेकिन एक दिन खेल-खेल में 
टिंकू गिरा फिसलकर था ;
चोट लगी और दर्द हुआ
तब रोया खूब फफक कर था ,
मम्मी ने फिर गोद बिठाकर 
प्यार से सिर को सहलाया ;
नहीं टालते बात बड़ो की 
बड़े लाड़  से समझाया ,
टिंकू ने फिर कान पकड़कर 
मम्मी से ये बात कही 
आज समझ में आया मुझको 
गलत था मैं और आप सही .
                       शिखा कौशिक