
शुक्रवार, 29 जुलाई 2011
बुधवार, 20 जुलाई 2011
पापा हमको ''डॉगी '' ला दो
पापा हमको ''डॉगी '' ला दो
हम डॉगी संग खेलेंगे ;
उसको पुचकारेंगे जी भर
कभी गोद में ले लेंगे .
पूंछ हिलाएगा जब आकर
उसको हम सहलायेंगे ;
मिटटी में गन्दा होगा जब
उसको हम नहलायेंगे .
पापा हमको ...
बन्दर जब आयेंगे छत पर
डॉगी से भगवाएंगे ;
उश ..उश ..कर कूद कूद कर
उसको जोश दिलाएंगे
पापा हमको .....
उसको बाँहों में भर लेंगे
जब स्कूल से आयेंगे ;
हाथ मिलाना सिखलाएंगे
योगा भी करवाएंगे .
पापा हमको .....
शिखा कौशिक
गुरुवार, 14 जुलाई 2011
हम बच्चे हैं प्यारे-प्यारे
फूलों जैसे कोमल मन के
तितली जैसे चंचल हैं ,
हम बच्चे हैं प्यारे-प्यारे
सदा ह्रदय से निर्मल हैं .
होंठों पर मुस्कान सजाये
उछल-कूद हम करते हैं ,
अपनी मीठी बोली से
सबका मन हर लेते हैं .
पापा के हम राज दुलारे
माँ की आँख के तारे हैं ,
हमको ही तो सच करने
अब उनके सपने सारे हैं
शिखा कौशिक
शनिवार, 2 जुलाई 2011
नहीं टालते बात बड़ों की
नहीं टालते बात बड़ों की
बारिश के दिन शुरू हुए थे
टर्र टर्र टर्रराता था ;
टिंकू मेढक उछल-उछल कर
अपने पर इतराता था .
उसकी मम्मी उसे रोकती
उनपर वो चिल्लाता था ;
मम्मी की इस रोक-टोक पर
उसको गुस्सा आता था ,
मम्मी कहती गीली मिटटी
कहीं फिसल न तुम जाना !
टिंकू कहता बड़ा अकड़कर
क्या मुझको बुद्धू माना ?
लेकिन एक दिन खेल-खेल में
टिंकू गिरा फिसलकर था ;
चोट लगी और दर्द हुआ
तब रोया खूब फफक कर था ,
मम्मी ने फिर गोद बिठाकर
प्यार से सिर को सहलाया ;
नहीं टालते बात बड़ो की
बड़े लाड़ से समझाया ,
टिंकू ने फिर कान पकड़कर
मम्मी से ये बात कही
आज समझ में आया मुझको
गलत था मैं और आप सही .
शिखा कौशिक
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