नहीं टालते बात बड़ों की
बारिश के दिन शुरू हुए थे
टर्र टर्र टर्रराता था ;
टिंकू मेढक उछल-उछल कर
अपने पर इतराता था .
उसकी मम्मी उसे रोकती
उनपर वो चिल्लाता था ;
मम्मी की इस रोक-टोक पर
उसको गुस्सा आता था ,
मम्मी कहती गीली मिटटी
कहीं फिसल न तुम जाना !
टिंकू कहता बड़ा अकड़कर
क्या मुझको बुद्धू माना ?
लेकिन एक दिन खेल-खेल में
टिंकू गिरा फिसलकर था ;
चोट लगी और दर्द हुआ
तब रोया खूब फफक कर था ,
मम्मी ने फिर गोद बिठाकर
प्यार से सिर को सहलाया ;
नहीं टालते बात बड़ो की
बड़े लाड़ से समझाया ,
टिंकू ने फिर कान पकड़कर
मम्मी से ये बात कही
आज समझ में आया मुझको
गलत था मैं और आप सही .
शिखा कौशिक
9 टिप्पणियां:
बारिश के दिन शुरू हुए थे
टर्र टर्र टर्रराता था ;
टिंकू मेढक उछल-उछल कर
अपने पर इतराता था .
उसकी मम्मी उसे रोकती
बहुत सुंदर बाल कविता
टिंकू ने फिर कान पकड़कर
मम्मी से ये बात कही
आज समझ में आया मुझको
गलत था मैं और आप सही .
yakeen nahi hota ki itni sundarta se maindhak ki baton ko koi abhiyakt kar sakta hai.badhai shikha ji.
मज़ा आ गया इस बाल रचना पर ... टिंकू की कहानी ..
कविता का प्रवाह और विषय वस्तु बच्चों के अनुरुप.गेयता और ग्राहय्ता विलक्षण.आसानी से जुबां पर चढ़्ने वाली शब्द-रचना.ऐसे गीतों को पाठ्यक्रम में शमिल करना चाहिये.
सुंदर बाल कविता, विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बालगीत लिखना आसान नहीं होता...आपने तो कमाल का गीत लिखा है.
वाकई बहुत सुंदर बालगीत है.बधाई.
मजा आ गया पढकर। बधाई इस शानदार बाल कविता के लिए।
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बहुत सार्थक ,लोक रंजक सीख देती अनुशाषित करती टिंकुओं को कविता खेल खेल में सांगीतिक सीख .
बहुत सुंदर बालगीत है
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