टीटू बन्दर चला एक दिन बन-ठन कर ससुराल ,
जेठ की गर्मी में लू खाकर हाल हुआ बेहाल !
सासू माँ ने पिलवाई उसको कोकाकोला ,
दम में दम आई तब जाकर टीटू बन्दर बोला !
सासू माँ तुम कितनी अच्छी ठंडा मुझे पिलाया ,
मैं भी गठरी में रखकर कुछ तुम को देने आया !
गठरी खोली सासू माँ ने उसमे था खरबूजा ,
ले बलैय्या टीटू की बोली न तुझ सा दूजा !
मीठा मीठा खरबूजा दोनों ने काट के खाया ,
गर्मी के इस मौसम का मिलकर लुत्फ़ उठाया !
शिखा कौशिक 'नूतन'
1 टिप्पणी:
क्या बात है...
सुन्दर बाल-गीत!
कुँवर जी,
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